
पवन मल्होत्रा और “सलीम लंगड़े पे मत रो” की दिलचस्प कहानी
फ़िल्म निर्देशक सईद मिर्ज़ा जब अपनी चर्चित फ़िल्म “सलीम लंगड़े पे मत रो” की स्क्रिप्ट पर काम कर रहे थे, तब उनके ज़ेहन में मुख्य किरदार के रूप में नसीरुद्दीन शाह का चेहरा था। हालांकि, सईद मिर्ज़ा और पवन मल्होत्रा की दोस्ती भी काफी पुरानी थी, जो “नुक्कड़” धारावाहिक के दौरान और गहरी हो गई थी।
फ़िल्म की रिसर्च के लिए सईद मिर्ज़ा अकसर मुंबई के डोंगरी इलाके में रात के वक़्त जाया करते थे, जहां मुस्लिम आबादी अधिक है। एक रात पवन मल्होत्रा ने उनसे साथ चलने की इच्छा जताई और मिर्ज़ा साहब उन्हें अपने साथ ले गए। वहां वे एक ऐसी जगह पहुँचे जहां जुए का खेल चल रहा था।
पवन मल्होत्रा ने एक इंटरव्यू में बताया कि उस वक़्त “नुक्कड़” इतनी लोकप्रिय हो चुकी थी कि लोग सईद मिर्ज़ा को पहचानने लगे थे। उसी शाम, मिर्ज़ा साहब ने पहली बार कहा कि अब वो नसीरुद्दीन शाह की जगह किसी युवा चेहरे की तलाश में हैं — एक ऐसा चेहरा जो सलीम लंगड़े के किरदार को सच्चाई के साथ पेश कर सके।
पवन मल्होत्रा का मानना है कि सईद मिर्ज़ा की कास्टिंग हमेशा बेहद सटीक होती थी। उन्होंने “नुक्कड़” का उदाहरण देते हुए कहा कि हर किरदार अपने रोल में बिल्कुल फिट बैठता था — भिखारी, वाकई भिखारी जैसा लगता था और सफाईकर्मी, सफाईकर्मी जैसा।
शुरुआत में पवन को सलीम का रोल नहीं ऑफर हुआ था। उन्हें एक दूसरा किरदार दिया गया था। जबकि पवन मल्होत्रा, आशुतोष गोवारिकर वाला किरदार निभाना चाहते थे। इस कोशिश में उन्होंने एक दिन अपनी मूंछें भी साफ कर दीं, इस उम्मीद में कि नया लुक सईद मिर्ज़ा को पसंद आ जाएगा।
लेकिन किस्मत को कुछ और मंज़ूर था। एक दिन जब पवन मिर्ज़ा के ऑफिस पहुँचे, तो उन्हें एक बड़ा सरप्राइज़ मिला — मिर्ज़ा साहब ने कहा: “जिम जाना शुरू कर दो, तुम करीम का किरदार निभा रहे हो।” दरअसल, फ़िल्म का पहला नाम “करीम लंगड़े पे मत रो” था, जो बाद में बदलकर “सलीम लंगड़े पे मत रो” रखा गया।
यह सुनकर पवन मल्होत्रा बेहद खुश हुए। उस समय बाहर मकरंद देशपांडे भी इंतज़ार कर रहे थे, जिन्हें बाद में फ़िल्म में एक अहम भूमिका मिली।
आज हम पवन मल्होत्रा जी का जन्मदिन मना रहे हैं। उनका जन्म 2 जुलाई 1958 को दिल्ली में हुआ था। वो एक बेहद प्रतिभाशाली अभिनेता हैं, जिन्होंने हर किरदार में जान डाल दी है।
आज यह लेख उनके जन्मदिन के अवसर पर एक छोटी-सी श्रद्धांजलि है।